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युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

बाइस

 

राम को एक-एक कर सुग्रीव द्वारा कुंभ तथा हनुमान द्वारा निकुंभ के वध के समाचार मिले। अपने पिता कुंभकर्ण का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने भयंकर युद्ध किया था; किंतु सुग्रीव और हनुमान उन पर भारी पड़े थे। यूपाक्ष ने मैंद के हाथों वीरगति पाई थी, शोणिताक्ष द्विविद के शस्त्रों की मार से खेल रहा था। प्रजंघ और अकंपन को अंगद धराशायी कर चुके थे। मकराक्ष ने अपने शंकरदत्त त्रिशूल से वानर सेना की बहुत क्षति की थी, और अपने पिता खर के हत्यारे का वध करने की शपथ खाई थी, किंतु अंततः राम के हाथों मारा गया था।

वे अपने तथा अपने साथियों के शरीरों को आहत करने वाले राक्षसों द्वारा प्रयोग में लाए गए बाणों को देख रहे थे। मकराक्ष के शूल के अतिरिक्त उसे सम्मुख सहायक सैनिकों ने क्षुर क्षुरप्र, नाराच, वत्सदंत, शिलीमुख, कर्णी, शल्य, तथा विपाठ आदि वाणों के ढेर लगा दिए थे।

...राक्षसों ने बाण-विद्या का विकट विकास किया था ...राम सोच रहे थे...किंतु अन्याय और अत्याचार की दासी बनकर कोई भी विद्या बंध्या हो जाती है...। दस्यु की शस्त्र विद्या समाज का क्या कल्याण कर सकती है...तभी राम को मेघनाद के वध का समाचार दिया गया ...राम के मन में प्रसन्नता की लहर उठी। कंठ जैसे रुद्ध हो गया। आंखें डबडबा आई। ...उन्हें लगा, उन्होंने अपने जीवन में यह दूसरा चमत्कार देखा था...

"सौमित्र कहां है?" अंततः उनके कंठ से तीन शब्द फूटे।

हनुमान और विभीषण का सहारा लेकर लक्ष्मण मंथर गति से राम के निकट आए। उनका शरीर रक्त से इस प्रकार नहाया हुआ था कि यह देख पाना कठिन था कि कितने घाव हैं और कहां-कहां हैं। शरीर में चुभे हुए शस्त्र-अस्त्र विभीषण और सुग्रीव ने पहले ही निकाल दिए थे। वे दोनों स्वयं ही घायल थे। शरीर पर अनेक स्थानों पर रक्त रिसता हुआ दिखाई पड़ रहा था; किंतु मुख-मंडल का उल्लास घावों के ऊपर छा गया था। लक्ष्मण अवश्य ही कुछ थके हुए और दुर्बल दिखाई पड़ रहे थे।

राम ने आगे बढ़कर लक्ष्मण को अपनी भुजाओं में भर लिया। इतने में संतोष नहीं हुआ तो उनके घायल शरीर को अपने वक्ष में भींच लिया। लक्ष्मण की एक हल्की-सी सिसकी से उनकी भुजाएं शिथिल हुईं। अलग हटकर उन्होंने लक्ष्मण का चेहरा देखा : वे पीड़ा के बीच में भी मुस्करा रहे थे...। राम से रहा नहीं गया। उन्होंने पुनः लक्ष्मण को गले से लगाया और उनके रक्त-रंजित भाल पर एक चुंबन अंकित कर दिया, "सौमित्र! आज तुमने मुझे शत्रुविहीन किया। तुमने मेरी सीता मुझे लौटा दी...।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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